ज़हन में यह बात नहीं रहती,
कि एक क़िरदार ही तो निभाना है,
कि रूह को तो फुरक़त में रहने दो,
एक वही तो वजूद का पैमाना है ।
अदाकारी सीखो दरख़्त से,
ख़िजाँ में पत्तों का गिरना,
और बहारों में गुलशन बनना,
इन सब से बेफ़िक्र, बेलगाव, संजीदा,
रहती हैं जड़ें,
संभाले वजूद को, पोशीदा ।।
सुकूं मिला, इत्ता शानदार पढ़कर, लंबे अरसे का वीराना गुलशन में बदलने सा लगा।ऐसे ही लिखते रहिये।
ReplyDelete