वो काग़ज़ की नाव, आज फिर पानी पे चल गई,
वो चार आने की कंपट, आज चार आने में मिल गई,
कंचो की खन्न - खन्न से, आज फिर गलियारी खिल गई,
कुछ मुड़े पीले पन्नो को आज फिर से स्याही मिल गई ।
भरी दोपहरी खेलने की, आज फिर से हिम्मत मिल गई,
पुरानी साइकिल को आज फिर तीन सवारी मिल गई,
नुक्कड़ वाली टपरी पे , फिर से जम - महफ़िल गई,
कुछ मुड़े पीले पन्नो को आज फिर से स्याही मिल गई ।
उन भीगे केश की ख़ुशबू से आज फिर धड़कन बढ़ गई ,
वो सकुचाती हथेली की कंपन आज फिर से दस्तक़ कर गई ,
खुली आखों को सपनों की, आज फिर से आदत पड़ गई ,
कुछ मुड़े पीले पन्नो को आज फिर से स्याही मिल गई ।
देरी तक जगने के लिए, आज फिर हड़काई पड़ गई,
थाली लेके खाने की, माँ, आज फिर से पीछे पड़ गई ,
आते स्कूटर की गड़गड़ से, आज फिर से बाछें खिल गई ,
कुछ मुड़े पीले पन्नो को आज फिर से स्याही मिल गई ।
वो चार आने की कंपट, आज चार आने में मिल गई,
कंचो की खन्न - खन्न से, आज फिर गलियारी खिल गई,
कुछ मुड़े पीले पन्नो को आज फिर से स्याही मिल गई ।
भरी दोपहरी खेलने की, आज फिर से हिम्मत मिल गई,
पुरानी साइकिल को आज फिर तीन सवारी मिल गई,
नुक्कड़ वाली टपरी पे , फिर से जम - महफ़िल गई,
कुछ मुड़े पीले पन्नो को आज फिर से स्याही मिल गई ।
उन भीगे केश की ख़ुशबू से आज फिर धड़कन बढ़ गई ,
वो सकुचाती हथेली की कंपन आज फिर से दस्तक़ कर गई ,
खुली आखों को सपनों की, आज फिर से आदत पड़ गई ,
कुछ मुड़े पीले पन्नो को आज फिर से स्याही मिल गई ।
देरी तक जगने के लिए, आज फिर हड़काई पड़ गई,
थाली लेके खाने की, माँ, आज फिर से पीछे पड़ गई ,
आते स्कूटर की गड़गड़ से, आज फिर से बाछें खिल गई ,
कुछ मुड़े पीले पन्नो को आज फिर से स्याही मिल गई ।
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